हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है, यह संदेश मेरे एक हिंदी प्रेमी मित्र से मुझे मिला, सोचा आप सभी के साथ एक विवेचन एवं प्रेरणात्मक संदेश के रूप में साझा करूँ।
हिंदी का कोई भी अक्षर ऐसा क्यूँ है, उसके पीछे कुछ कारण हैं →
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*क, ख, ग, घ, ङ* –
कंठव्य कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के समय ध्वनि कंठ से निकलती है ।
(एक बार बोल कर देखिये)
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*च, छ, ज, झ,ञ* –
तालव्य कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के
समय जीभ तालू से लगती है ।
(एक बार बोल कर देखिये)
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*ट, ठ, ड, ढ ,ण* –
मूर्धन्य कहे गए,
क्योंकि इनका उच्चारण
जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है ।
( बोल कर देखिये )
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*त, थ, द, ध, न* –
दंतीय कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है ।
(बोल कर देखिये)
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*प, फ, ब, भ, म* –
ओष्ठ्य कहे गए,
क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के मिलने पर ही होता है।
(बोल कर देखिये)
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अति उत्तम विवेचन!
अपनी मात्रभाषा हिंदी के संदर्भ में गरिमामयी, अत्यंत ज्ञानवर्धक जानकारी तथा इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण आप सभी को प्रेषित करते हुए मुझे अत्यधिक हर्ष एवं गर्व का अनुभव हो रहा है।
हम सभी को इस पर ना सिर्फ़ गर्व करना चाहिए, ना ही इस संदेश को पढ़कर निमित ताली चिन्ह मात्र दिखाना चाहिए, अपितु हम सबका नैतिक और सामाजिक कर्तव्य है कि इस संदेश को ही नहीं बल्कि हम अपनी मात्रभाषा अपनी सच्ची पहचान “हिंदी” से माता तुल्य प्रेम करते हुए, इसके प्रचार और प्रसार के लिए अपने स्तर पर हर सम्भव प्रयाश करें। हम अपनी भाषा पर गर्व करते हैं, ये सही है परन्तु लोगो को इसका कारण भी बताईये । इतनी वैज्ञानिकता दुनिया की किसी भाषा में नही है ।
हमारी मातृभाषा आदि अनादी काल से सदैव महानतम बनी रही है और हम सबके प्रेम और निरंतर प्रयाशों से हमेशा ही विश्व-मार्गदर्शक बनी रहेगी। “क्र्न्व्न्तो विश्वामार्यम” जैसी विचारधारा का मार्ग ईश्वर स्वयं प्रशस्त करते हैं। ऐसा मेरा विश्वास है, उम्मीद है आप सब भी इससे सहमत होंगे।
आपका भवदीय,
श्रीपाल सिंह
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