आत्मज्ञान का महापर्व है दीवाली:-
मनुष्य को अपने ज्ञान का अभिमान तो होता है, परन्तु जिसको अभिमान का ज्ञान है वास्तव में वही सच्चा ज्ञानी है!
ज्ञानी रावण के अभिमान का ज्ञान ना होने से उसके पतन के माध्यम से दीपावली हमें हमारी अपनी आत्मा की शक्ति की पहचान कर स्वयं के अनुभव से ज्ञान प्राप्त करने का संदेश देता है|
जिस प्रकार सूर्य उर्जा एवं प्रकाश का प्रतीक है, इसके बिना जीवन नहीं अतः पूजनीय है ठीक उसी प्रकार ज्ञान के प्रतीक दीपक की भाँती एक ज्ञानी मनुष्य भी समाज में सदैव पूजनीय होता है !
महात्मा बुद्ध की एक सीख है कि “एक दीपक से हजारो दीपक जलाए जा सकते है और उसके बाद भी उस दीपक की रौशनी कम नहीं होती“… इसका अर्थ है कि ज्ञान बांटने से घटता नहीं है अपितु फैलता है! अतः अपना अर्जित ज्ञान एवं अच्छी बातें सदा एक-दूसरे से साझा करते रहना चाहिए|
दिवाली का पौराणिक महत्त्व>>>
१. भगवान् राम जी का लंका विजय के उपरान्त अयोध्या वापस आना|
२. समुन्द्र मंथन से लक्ष्मी जी का निकलना|
३. भगवान् कृष्ण द्वारा नरकासुर राक्षस का वध (नरक चतुर्दशी अथवा छोटी दिवाली)
४. पांडवो का वनवास समाप्त भी कार्तिक मास अमावश्य को ही हुआ था|
५. राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था|
भगवान् राम ने रावण को मारा तो क्या बुराई का अंत हो गया? बुरे आदमी को मारा जाता है तो क्या बुराई समाप्त हो जाती है? नहीं.. समाज से उस बुराई को समाप्त करने का प्रयास करना है, घी के दीपक के साथ हमें प्रति दिन ज्ञान के दीपक जलाने है….
प्रसिद्ध संस्कृत प्रार्थना:- “असतो मा सद गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर मा अमृतं गमय” का अर्थ है: “मुझे असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।” दिवाली इस प्रार्थना पर ध्यान लगाने और आध्यात्मिक ज्ञानोदय की ओर बढ़ने का एक आदर्श समय है। केवल बाहर दीये जलाना ही पर्याप्त नहीं है; हमें अपने हृदय में भी ज्ञान का दीपक जलाना चाहिए।
दीपावली पर ज्ञान के प्रकाश के महत्त्व को दर्शाती हुई एक कहानी है उल्लू और हंस की कहानी>>>>
भारतीय परंपरा में एक सार्थक कथा उल्लू और हंस की है, जो इस बात का रूपक है कि विभिन्न लोग ज्ञान और अज्ञान को कैसे समझते हैं। कथा में, एक उल्लू दावा करता है कि दोपहर होने पर भी रात होती है क्योंकि उसकी बड़ी आँखें सूरज के तेज प्रकाश से अंधी हो जाती हैं अर्थात बंद हो जाती है, उल्लू को लगता है रात हो गयी। ज्ञान का प्रतीक हंस तर्क देता है कि नहीं सूरज के रहने पर तो वास्तव में दिन है, लेकिन उल्लू मानने से इनकार कर देता है। यह कथा दर्शाती है कि बोध व्यक्तिपरक होता है, और जो किसी के लिए प्रकाश हो सकता है, वह किसी अन्य के लिए अंधकार हो सकता है। भगवद्गीता (2.69) में श्रीकृष्ण इसी भावना को प्रतिध्वनित करते हैं जब वे कहते हैं, “जो ज्ञानी के लिए दिन है, वही अज्ञानी के लिए रात है।”
यह कहानी हमें याद दिलाती है कि बहुत से लोग अज्ञानता में जीते हैं और खुद को ज्ञानी समझते हैं। अयोध्यावासियों की तरह, जिन्होंने श्री राम का अपने जीवन में पुनः स्वागत किया, हमें भी अपने हृदय में ज्ञान और बुद्धि के दिव्य प्रकाश को लाने का प्रयास करना चाहिए , और इस प्रकार अज्ञान से सत्य की ओर बढ़ना चाहिए।
दिवाली पर वास्तविक सफाई एवमं लक्ष्मी पूजा>>>
दिवाली के दौरान धन की प्रतीक देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए अपने घरों को साफ़-सुथरा और सजाना एक आम प्रथा है। हालाँकि, अपने हृदय को अज्ञानता, द्वेष और अधीरता की धूल से साफ़ करना भी ज़रूरी है। जिस तरह हम त्योहार के लिए अपने घरों की सफ़ाई करते हैं, उसी तरह हमें अपने हृदय की भी जाँच करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे शुद्ध हैं और ईश्वर के निवास का स्वागत करते हैं।
इस अर्थ में, धन केवल भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक भी है। जब हम देवी लक्ष्मी से भौतिक समृद्धि की प्रार्थना करते हैं, तो हमें उस आध्यात्मिक धन की भी कामना करनी चाहिए जो हमें इस जीवन से परे अनंत काल तक ले जाए। और वह सच्चा धन है सद्कर्म, ज्ञान, प्रेम और भक्ति… इसी को भगवान् कृष्ण ने भगवत गीता में कर्म-योग, ज्ञान-योग एवं भक्ति-योग के माध्यम से भगवत-प्राप्ति का मार्ग बताया है!
अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता का यह अंश भी द्वेष एवं अज्ञान के अन्धकार को दूर कर नव उर्जा के संचार के लिए प्रेरित कर्ता है>>>>
भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाईं से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें, बुझी हुई बाती सुलगाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ|
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ|
इसी सन्देश के साथ, आप सभी को एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
आपका, श्री