आइये योग जानें
उपरोक्त जानकारी का स्रोत:: भारतीय योग संस्थान..
उपरोक्त जानकारी के बाद योग को और अधिक जानने के लिए मैंने, स्वामी देवव्रत सरस्वती जी द्वारा लिखित पुस्तक “अष्टांग योग” को भी पढ़ा| इस प्रकार से मुझे जो भी जानकारी प्रात हुई, उसमें अपने स्वं के विश्लेषण को जोड़कर और अपनी समझ के आधार पर में कुछ अहम् नियमो/बिन्दुओं की अपनी व्याख्या आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ:
अस्तेय: इसका अर्थ होता है अपने आचरण को ऐसे बनाना जिसमे चोरी, छल-कपट, ठग जैसे निंदनीय कृत्यों के लिए कोई स्थान न हो, न ही कभी भी बलपूर्वक किसी दुसरे की सम्पति अथवा किसी वास्तु को अपना बनाने का प्रयाश करना|
अपरिग्रह: धन या किसी भी भोगने योग्य वस्तु का आवस्यकता से अधिक संचय करना| ऐसा करने से हम अपने जीवन का असली मानवी उद्देश्य भूलकर न तो इसका आनंद ले पाते है और न ही मानवता को कुछ दे पाते है, उल्टा छल-कपट, इर्ष्या-द्वेष, लोभ-लालच में अपने जीवन को उल्हाकर इसको और अधिक जटिल बना लेते है| इसके बारे में किसी ने सही कहा है:
“मैं फूल चुनने आया था, बाग़-ए हयात में,
दामन को अपने कांटो में उलझा के रह गया|”
ब्रह्मचर्य: ब्रह्मचर्य सिर्फ शारीरिक ही नहीं होता अपितु मानसिक ब्रह्मचर्य भी आवश्यक है, जिसमे शारीर की शुद्धि के साथ साथ विचारो में सात्विकता एवं सुसंगती रखना भी आवश्यक है|
ईश्वर प्रणिधान: अपने जीवन के लिए ईश्वर को धन्यवाद देना, अपने जीवन की उप्लाभ्दियों का श्रेय ईश्वर को देना, अर्थार्त अपना सर्वश्व: ईश्वर को समर्पित कर देना तथा धर्म-संगत कर्म करते रहना| इसमें मैं या अहम् जैसे शब्दों के लिए कोई जगह नहीं, किसी ने लिखा भी है:
“जब मैं था तब तू नाही, जब तू है तो मैं नाही,
प्रेम गली अति सांकरी, इसमें दो ना समायी|”
“धन्यवाद” – श्री
Detail information on Yoga with well explanation..
Shri bhai very good start
Keep it up👍👍